अनभिज्ञ
अनभिज्ञ सच्चिदानंद के अर्थ से कोसों दूर, जब मेरा मन स्वयं के अर्थ को खोजने निकलता है, तो कभी प्रसन्नता में अपनी उपलब्धियों को, और कभी दुःख में अपने संघर्षों को याद करने लगता है, और कौन है जो देखता है सब - बस उससे अनभिज्ञ बना रहता है। रिद्धिमा सर्राफ 13/09/22