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Grace 6

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                                                       ..                                                   Grace - 6                                                           Grace  अरण्य से गुजरते मन्त्रहीन विचारों के जाल से दूर दूर दूर तक फैली पूरी तरह से अनछुई सी एक पेड़ की शाखाएँ देख मैं धीरे से बैठ गई  अचानक एक पत्ती की खुशबू  मेरे विचारशून्य मन को बिना कुरेदे आनंद का आभास देने लगी तरंगें जैसे झूला झुला रही थी वो जंगल की नीरवता और गहन हो गई ध्यान देने पर भी वहाँ बस वह खुशबू  ही रह गई रिद्धिमा 16 - 06 - 2021

किरदार

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                                                         ..                                                      किरदार धर्म युद्ध में अधर्म के साथ खड़े होकर , अपना धर्म निभा रहे थे , चारों ओर से तीर भाले तलवार चलाये जा रहे थे , या तो ढेर होगा अर्जुन , या कृष्ण प्रतिज्ञा टूटेगी ,  भीष्म प्रतिज्ञा सुन , कैसे गुडाकेष को निद्रा आएगी , पर वो तो सोता था गहरी निद्रा में , भरोसा था अटल कि है वह हरी की क्षत्र छाया में , चारों ओर हा - हा कार मच गया था , मानवता से मनुष्य का विश्वास उठ गया था , पाला पोसा , जिन हाथों से खिलाया था , मार दुँगा उसे ऐसा संकल्प कैसे उठाया था , बहुत रोष में पितामह आ गये थे , तीर पर तीर मारकर व्यग्र किये और हुए जा रहे थे , नेत्र कृष्ण के लाल हो गए थे , देख भक्त पर विपति कृष्ण बेहाल हो गए थे , भूल गए वे अपनी प्रतिज्ञा , उठा लिया हाथों में रथ का पहिया , ओह ! सामने देखा तो भीष्म हाथ जोड़े खड़े थे , देख कर वह रूप त्रिभुवन में सभी काँप रहे थे , बाल थे बिखरे हुए , और दुपट्टा उड़ गया , ठहर तू अर्जुन , इस बूढ़े का दिमाग है फिर गया , पितामह को देख कर , अन्तर्यामी को ध्यान आया , सारा ख