किरदार
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किरदार
धर्म युद्ध में अधर्म के साथ खड़े होकर ,
अपना धर्म निभा रहे थे ,
चारों ओर से तीर भाले तलवार चलाये जा रहे थे ,
या तो ढेर होगा अर्जुन ,
या कृष्ण प्रतिज्ञा टूटेगी ,
भीष्म प्रतिज्ञा सुन ,
कैसे गुडाकेष को निद्रा आएगी ,
पर वो तो सोता था गहरी निद्रा में ,
भरोसा था अटल कि है वह हरी की क्षत्र छाया में ,
चारों ओर हा - हा कार मच गया था ,
मानवता से मनुष्य का विश्वास उठ गया था ,
पाला पोसा , जिन हाथों से खिलाया था ,
मार दुँगा उसे ऐसा संकल्प कैसे उठाया था ,
बहुत रोष में पितामह आ गये थे ,
तीर पर तीर मारकर व्यग्र किये और हुए जा रहे थे ,
नेत्र कृष्ण के लाल हो गए थे ,
देख भक्त पर विपति कृष्ण बेहाल हो गए थे ,
भूल गए वे अपनी प्रतिज्ञा ,
उठा लिया हाथों में रथ का पहिया ,
ओह ! सामने देखा तो भीष्म हाथ जोड़े खड़े थे ,
देख कर वह रूप त्रिभुवन में सभी काँप रहे थे ,
बाल थे बिखरे हुए ,
और दुपट्टा उड़ गया ,
ठहर तू अर्जुन ,
इस बूढ़े का दिमाग है फिर गया ,
पितामह को देख कर ,
अन्तर्यामी को ध्यान आया ,
सारा खेल है रचकर ,
उसी ने बनाया उसी ने मिटाया ,
रक्षा अर्जुन की नहीं रक्षा भीष्म प्रतिज्ञा की थी ,
पारी में इनकी खड़े होकर - जीत उनको दिलानी थी ,
भीषण युद्ध के बीच भी ,
कर्तव्य निभाना होता है ,
कृष्ण हो या हो भीष्म ,
सबको अपना किरदार निभाना होता है।
रिद्धिमा
१५ - ०५ - २०२१
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