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माटी का बैभव

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 ..       माटी का वैभव   प्रबल है नियति का खेल , अगोचर कर्म की धारा , रहना है सचेत , और गुदड़ी के लाल को भी है जानना , कहते हैं सूर्य रेखा से होते हैं सम्पन्न , पर पुत्र उन्हीं का रहा आजन्म खिन्न , बहुत दूर लगती है प्रसन्नता , नहीं भाती कभी कभी तो भव्यता , जैसे थी उर्मिला के लिए अयोध्या , ऐसे नहीं भाती पिया बिना बिछौने की कोमलता , अर्थ कीर्ति का लोभ है भैरव , लेकिन फिर भी सब है माटी का वैभव।  आभार  रिद्धिमा  १८-०७-२०२१