मिलने की रस्म

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मिलने की रस्म 

मिलने की रस्म को अदा करना है,

मुस्कराहट आ तूझे आज फिर लबों पर दिखना है।

इजाजत नहीं आज पतझड़ तुझको,

ले आओ बहारों को आज तो बसंत को सजना है।

आंसुओ अपनी आहट का पता न देना किसी को,

कर देना कोई बहाना न इनको बहाना है।

छोडो, जाने दो, सब सपना है,

बह जाने दो इन्हें भी,

यहाँ कहाँ कोई अपना है ..

रिद्धिमा

22- 01 - 2021


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