चाहत और शिकवा

 ..

कुछ यूँही 

चाहत और शिकवा साथ-साथ चलते हैं,

उँचे उड़ने वाले पँछी भी आखिर जमीन पर ही ठहरते हैं ....



ख्वाब है मिट्टी, और मिट्टी है मंजिल,

बीज सी समझ होगी,तो गहराई भी साथ देगी ...



जीवन छोटी मोटी बातों की ऊन सा ,

 अनगिनत रँग , 

और हमारी पसन्द ना पसन्द में उलझे हुए हम...


भिन्न भिन्न समय 

रिद्धिमा





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