सब कुछ एक ही है
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सब कुछ एक ही है
सब कुछ एक ही है
पृथ्वी से काया ,
सूर्य से ऊर्जा ,
चंद्र से रस ,
जल से जीवन ,
आकाश से वृद्धि ,
एक छोटे से पत्ते में ,
समस्त पंचभूतों के साथ ,
अंतरिक्ष और ब्रह्माण्ड,
सब समाया है।
सब कुछ एक ही है ,
और इसी से तो ,
अद्वैत का भाव आया है।
अपने ही पुत्र , पत्नी माँ को दीक्षित करना ,
फिर एक - एक कर सबको जाते देखना ,
निश्चित ही मंदिर के ,
भगवान की मूरत ही पूजनीय है ,
पर यह मंदिर जिसमें भगवान रहते हैं ,
उसका क्या ?
हाँ भगवान हैं , इसीलिए तो मंदिर है ।
रिद्धिमा
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