अब जाग


 

 अब जाग



 

देह है जो 'दे' सबको,

न कर मोह उसका,

छोड़ना है एक दिन जिसको,

झंझट हैं सब तर्क,

उलझाने की विधियाँ हैं,

ये कहा उसने,

ये किया उसने,

ये चालाकी,

ये छल -कपट,

बीत गये कहते -कहते जनम अनंत,

अब जाग और मिलादे खुद को हरी की इच्छा में,

नाम का ले आसरा,

जो है  भवसागर का एकमात्र सहारा।।

रिद्धिमा

9-11-22 

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