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मोहब्बत/इश्तिहार

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  मोहब्बत/इश्तिहार न मिल सकी जिसे मोहब्बत , वो इश्तिहार लगाया करें , मोहब्बत से खिले कमल भी, कभी भवरों को निमंत्रण भेजा करते हैं.... 

पिंजरे की बुलबुल

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  पिंजरे की बुलबुल छोटी सी बुलबुल लाड़ली सबकी,  अब पिंजरे में नहीं,  छोटे से लकड़ी के घर में रहती है, खुला है आसमान उसके पास, फिर क्यों बंधन में रहते है, रोज सुबह दाना-पानी समय से उसको मिलता है, और इना, मीना, और उसकी माँ से प्यार भी तो बहुत मिलता है, सोचती है कहीं और जाकर न मिला खाना और ठिकाना, तो व्यर्थ ही आज़ादी का दम्भ भरूंगी, तकलीफ ही क्या है यहां मुझको, जो यहां से दूर उड़ूँगी, बिन पिंजरे के भी वह पिंजरे की बुलबुल बन जाती है,  और हैं पंख उसके भी यह तो भूल ही जाती है... 

मुमकिन है

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                                                                Udaan , 3x3 feet मुमकिन है कि लफ़्ज - लफ़्ज आइना बन जाए , नज़र हो तेरी और अश्क़ गज़ल की पलकों पर सज जाए , और मुमकिन है यह भी तसव्वुर से मोहब्बत हो इतनी , कि अक्स-अक्स रह जाए और मजमून ही खो जाए .. 

सीमाओं के पार Transcend Boundaries

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 Transcend Boundaries An artist by nature, an out-of-this-world person,   Even in that thing beyond borders, Something excites these things beyond the horizon, Know which is the field of ignorance that binds the artist, By filling the paintbrush, the color engraves these pictures,   Some figures that do not belong to this place, Ahh! You can call it a lie too,   because you don't even know it, Hey even the artist doesn't know In this world of dreams, The artist takes you on a tour of a new world, Yes, he is an artist who can paint feelings, from senses to knowledge, And makes life fragrant with knowledge... सीमाओं के पार स्वभाव से ही एक कलाकार इस दुनिया से बाहर का व्यक्ति,   उसमें भी सीमाओं के पार की बातें,  कुछ उत्साहित करती हैं ये क्षितिज से पार की बातें, जाने कौन सा वह अज्ञान क्षेत्र है जो कलाकार को बांधता है,  तूलिका में भरकर रंग इन चित्रों को उकेरता है,  कुछ आकृतियाँ जो इस जहाँ की है ही नहीं,  आह ! कह सकते हैं आप इसे झूट भी,  क्योंकि आप इसे ज

तितली

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            तितली बैठ कर अक्स पर अपने तितली , आईने की तितली से कहने लगी , छोड़ कर ये ख्वाब की दुनिया , आ तुझे मैं हकीकत में गले लगा लूँ ...

अब जाग

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    अब जाग   देह है जो 'दे' सबको, न कर मोह उसका, छोड़ना है एक दिन जिसको, झंझट हैं सब तर्क, उलझाने की विधियाँ हैं, ये कहा उसने, ये किया उसने, ये चालाकी, ये छल -कपट, बीत गये कहते -कहते जनम अनंत, अब जाग और मिलादे खुद को हरी की इच्छा में, नाम का ले आसरा, जो है  भवसागर का एकमात्र सहारा।। रिद्धिमा 9-11-22 

अनभिज्ञ

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अनभिज्ञ सच्चिदानंद के अर्थ से कोसों दूर, जब मेरा मन स्वयं के अर्थ को खोजने निकलता है, तो कभी प्रसन्नता में अपनी उपलब्धियों को, और कभी दुःख में अपने संघर्षों को याद करने लगता है, और कौन है जो देखता है सब - बस उससे अनभिज्ञ बना रहता है।   रिद्धिमा सर्राफ 13/09/22