अब जाग देह है जो 'दे' सबको, न कर मोह उसका, छोड़ना है एक दिन जिसको, झंझट हैं सब तर्क, उलझाने की विधियाँ हैं, ये कहा उसने, ये किया उसने, ये चालाकी, ये छल -कपट, बीत गये कहते -कहते जनम अनंत, अब जाग और मिलादे खुद को हरी की इच्छा में, नाम का ले आसरा, जो है भवसागर का एकमात्र सहारा।। रिद्धिमा 9-11-22